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Monday, January 22, 2024

वीआईपी बनाम भगवान










दस्तक पड़ी द्वार पर तो, द्वारपाल चीखा, "कौन है तू? 

बिना टिकट कहां घुस रहा?"

वो बोला, "अरे मैं भगवान हूं, ये तो मेरा ही मंदिर ठहरा!"

द्वारपाल भड़का, "चल भाग, तू मुफ्तखोर, घुसा चला आ रहा, 

देखता नहीं ये वीआईपी एंट्री है, दर्शन हो रहा?!"

वो चकराया, "मगर मैं तो यहां हूं, दूर खड़ा?

ये समारोह, ये भव्य निर्माण,

सब मेरे ही नाम पर तो हो रहा!"

द्वारपाल हंसा, "तू भगवान है?

क्या है तेरे पास इस अयोजन का निमंत्रण?

अरे कौन भगवान, कैसा भगवान?

आज का भगवान तो है - धन और धनवान।"

Sunday, October 15, 2023

तमाशा










फसादों में उलझे हो, न जीते हो न जीने देते हो,

जिंदा हो मगर मौत का खेल खेलते हो।

तुम्हें मालूम नहीं फर्क - निर्दोष और दोषी का,

तुम्हें आता है सिर्फ खेल बर्बादी का।


देकर बलि कमज़ोर और मजलूमों की,

भरते हो दम सच्चाई और खुदाई का। 

चाहे नाम लो किसी भी ऊपर वाले का,

दुश्मन इंसानियत के हो तुम,

सही मानों में तुम ही हैवान हो;

और तुम्हारा ऊपरवाला - नकारा, बेगैरत,

जिसकी खुदाई के नाम पे चलता है,

तुम्हारा ये कारोबार हैवानियत का।


इससे तो बेहतर थे हम जानवरों के मानिंद,

बस एक भूख ही अपना खुदा था।

चलो कर दो अंत तुम्हारी-हमारी इस बीमार नस्ल का, 

होगा तभी शायद सृजन एक नए मकबूल नस्ल का।


तमाशबीनों ये तमाशा देखते रहो, 

लहू के छींटों का स्वाद लेते हो,

जो आज ये बहता रक्त तुम्हारा नहीं, 

रक्तबिजों का हौसला बढ़ाते हो।

कभी बिकेगा गोश्त तुम्हारा भी इसी मंडी में,

तुम्हारी जिंदगी की भी लगेगी बोली,

आखिर तुम भी हो एक बिकाऊ समान, इसी बाजारू दुनिया में,

जहां ज़िंदगी सस्ती, मगर उसका तमाशा बिकता बड़ा महंगा है।

 

Thursday, January 2, 2020

ठंड बहोत है!

ठंड बहोत है, मौसम में या दिलों में?
जम गया है खून, पानी जैसे, सड़कों पे या दिलों में?
कुछ लोग आग लगा के खुश हैं, देश में या दिलों में?
दोस्त, पड़ोसी, सब अजनबी, ये दूरियां घरों में या दिलों में?
तू कौन है, मैं कौन हूं, नकाब चहरों पे या दिलों पे?
ये नफरत है या फितरत, ज़हर किताबों में या दिलों में?
जश्न ये नए साल का, सिर्फ तारीख़ के पन्नों में या दिलों में? 
खुशी मनाएं किस बात का, झूठे, वादों पे या दिलों पे?
बातें करते सभी हैं, मगर यकीन, शब्दों पे या दिलों पे?
मसीहा हैं, रहनुमा हैं, खुदा भी है, महलों में या दिलों में?
मुझे खामोश करने में लगे हो, गलती मुझमें है या दिलों में?

Thursday, March 21, 2019

रंगों की दुनिया और मैं - Rangon ki Duniya aur Main



रंगों में सराबोर है ये दुनिया मेरे इन स्याह दीवारों के बाहर,
सोचता हूं झांक कर आऊं खिड़की के उधर,
मगर जनता हूं अंधेरों से उजाले को देखने पर आंखें चौंधिया जाती हैं,
आदत ना हो रंगों की तो खून की सुर्ख़ी भी बेरंग नज़र आती है,
कैद में रहते- रहते सलाखें भी दोस्त समझ आती है,
मदहोश ज़माना है, बेहोश मैं भी,
उन्हें ज़िन्दगी की धुन और मुझे मौत की आहट सुनाई देती है।

Rangon mein sarabor hai ye duniya mere in siah deewaaron ke bahar,
Sochta hun jhaank kar aaun khidki se udhar,
Magar janta hu andheron se ujale ko dekhne par ankhen chaundhiya jaati hai,
Adat na ho rango ki to khoon ki surkhi bhi berang nazar ati hai,
Quaid mein rahte rahte salakhen bhi dost samajh aati hai,
Madahosh zamana hai, behosh main bhi,
Unhe zindgi ki dhun aur mujhe maut ki aahat sunai deti hai!

Thursday, October 25, 2018

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो!




















रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
हम सबके अंदर एक रावण है,
रंगीन मुखौटों के पीछे बेशर्म ख्वाहिशों का अस्लाह है।

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
सीता हो या राम बदनाम कोई भी हो सकता है,
बस उंगली उठा कर बातों के तीर चलाना बड़ा आसान है।

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
पटरियों पर दौड़ती भी एक आग है,
ये आग जो गुज़र जाए ज़िंदगियों पर तो परिवार बर्बाद है।

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
हर एक पत्थर सेतु बंधन में एक किरदार है,
आंकड़ों की भीड़ में कुचल जाए जो वो भी इंसान है।

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
हर उपदेश के पीछे एक कहानी है,
मैं कब कहता हूं, किसे कहता हूं और क्यूं कहता हूं, 
वो जानना ज़रूरी नहीं, समझ आए तो बेहतर,
वरना मैं कोई भगवान नहीं।।

Monday, January 1, 2018

नया साल मुबारक।



आज फिर वक़्त हमें उसी दोराहे पर लाया है,
जहां कुछ छूटता है, कुछ मिलने के वादे के साथ।

बारह कागजों के जो पुलिंदे हमने सजाये थे,
वो कटके बिखरने को हैं, घड़ी के हाथ।
हाँ, एक और नया पुलिंदा तैयार है, चंद कागजों और कई कसमों के साथ।

मगर इस दोराहे पर तो हर बार यूँही आके मिलते हैं,
कुछ ख्वाब, कुछ उम्मीदों,  कुछ वादों के साथ,
जो बदल गये टूटे, अधूरी, झूठे अल्फ़ाज़ों में,
उगते सूरज और ढलते चाँद के साथ।

फिर से तैयार हैं हम वक़्त का एक और सफर तय करने को,
अपने वजूद को तारीखों का मोहताज करने को,
हाथों में लेकर जाम, इस घड़ी के नाम, आप दोस्तों के साथ।।

Wednesday, November 4, 2015

रंग बदलते हैं! (Colors Change)



किसी को पसन्द हरा तो किसी को केसरिया, छुरे पे मगर सबके धार है तेज़,

नापसन्द है उन्हें बस मेरा सफ़ेद कुर्ता, लाल रंग से वो चाहते हैं इसे रंगना।

शुक्र है लहू पे रंग कोई चढ़ता नहीं, वरना बदल देते उसे भी वो मेरे नाम पर,

अस्पतालों में होता ये नया तरीका खून के मिलान का।

किसी को नापसन्द है मेरा खाना तो किसी को मेरा पहनावा,

होती है मेरी लाशों का ढ़ेर लगाकर उनकी संस्कृती की रक्षा।

किताबें वही हैं, बातें वही हैं, बस ऊपर जिल्द का रंग है बदलता,

मुझ काफ़िर का सर कलम करना ही है हर धर्म की शिक्षा।

कहते है विकास हुआ है मानव समाज का,

मगर उन्हें अब भी किसी की रोटी तो किसी की बेटी छीनने से फ़ुरसत नहीं।

दौर है आजकल पुरस्कारों का, किसी को देने का तो किसी को लौटाने का,

बस मेरे हाथ आया है ये पत्र तिरस्कार का।

कौन ग़लत, कौन सही, ये प्रश्न बहुत मुश्किल नहीं,

युगों से खिंची है सुर्ख़ लकीरें मेरे पटल पर, इसके जवाब में।

पूर्वजोँ की शक्ल में आँख, कान और मुँह बंद कर दिए मेरे,

स्वतंत्रता बस नाम की, गयी नहीं कहीं मनसिक परतंत्रता।

हर प्रश्न पे शब्द पत्थरों के मानिंद फेंके गए मुझपे कई हर ओर से,

सहिष्णुता के नाम पर है व्याप्त, ये कैसी असहिष्णुता।।

Thursday, December 18, 2014

Where is he?



Where is he...
in whose name people put their faith and life,
in whose name both saints and demons come alive,
in whose name men are divided from men,
in whose name blood flows faster than water,
in whose name children are baptised or butchered,

No matter the name, no matter the face,
Under his almighty gaze,
Innocent suffer, flourishes hate,
The search goes on...
Long live his grace!

Sunday, June 8, 2014

होली है।


आओ खेलें होली है
इलेक्शन के मौसम में
राजनैतिक रंगो की खुली पोटली है
ऐक फेंके केसरिया तो दुजे ने पलट झाडू चलाई है
भांग में  मलंग पप्पू भी नाचे
लाल, नीला, पीला, हरा मिलके नये रंगो का गठजोड़ बनाये है!
कीचड़  भी खूब उछल रहा,
मीडिया गुब्बारे भरे है,
जनता को कोई मूरख न समझे,
हाथ उसके वोट की पिचकारी है! 

Aao khele holi hai...
Election k mausam me,
Rajnitik rango ki khuli potli hai...
Ek feke kesaria to duje ne palat jhadoo chalai hai ...
Bhang me malang pappu bhi nache tata thaiya,
Lal, nila, pila, hara milke naye rango ka gathjor banaye hai!
Kicchar bhi khub uchal raha,
Media k gubbare bhari hai...
Janta koi murakh na samjhe,
Hath uske vote ki pichkari hai!

Sunday, March 24, 2013

कूड़े के ढेर का पेड़... Kude Ke Dher Ka Ped...


कूड़े के ढेर में खड़ा सूखी टहनियों  से  भरा  वो  एक  पेड़...
मानो  यूँ कोई  ज़िन्दगी तलाशता हुआ मौत की देहलीज़ पर।
देख के लगता है याद करता है वो वक़्त जब पतझर के दिन भी बहार होते थे...
पास उसके एक बाज़ार लगता था, जिसकी चहल-पहल से उसकी शामें खुशहाल  होती थी।।

Kude ki dher me khada sukhi tahnio se bhara wo ek ped...
Mano yun koi zindagi talashta maut ki dehliz par!
Dekh k lagta hai yaad karta hai wo waqt jab patjhar k din bhi bahaar hote the...
Pas uske yun ek bazar lagta tha, jiski chahal-pahal se uski shamein khushhal hoti thi!!

कभी उसकी टहनियों पे बर्तन तो कभी खिलोने लटकते थे,
आज तो खुद की पत्तियों के भी निशां नहीं मिलते!
अब न वो क्रेता रहे न वो विक्रेता, कभी कभी मिल जाता है वो एक बुढ़ा कुड़ेवाला...
मगर उस गरीब के लिए तो है बस कूड़े का ही मोल, बूढ़े पेड़ से क्यूँ बोले वो दो मीठे बोल?
रहते है उस कबाड़खाने में कुछ जानवर...कुत्ते, चूहे, सांप, छछुंदर...
पर वो भी नहीं भटकते उसके आस-पास, मौत की मनहूसियत की गंध आती होगी उन्हें शायद।।

Kabhi uski tahniyon pe bartan to kabhi khilone latakte the,
Aj to khud ki pattion ke bhi nishan nahi milte!
Ab na wo kreta(buyers) rahe na vo vikreta(sellers), 
kabhi kabhi mil jata hai wo ek budha kudewala...
Magar us gareeb k liye to hai bas kude ka hi mol, budhe ped se kiu bole wo do mithe bol?
Rahte hai us kabarkhane me kuch janwar...Kutte, chuhe, sanp, chachundar...
Par wo bhi nahi bhatakte uske aas-pas, maut ki manhusiyat ki gandh ati hogi unhe shayad!!


पर फिर भी आस नहीं मरी है अब तक उसकी, पास ही कहीं लगता है वो बाज़ार अब भी …
वोही चहल-पहल कुछ ऐसे बुलाती है उसे, जवां बसंत की याद दिलाती है उसे!
उम्मीद है उसे फिर उसी रौशनी में डूब जाने की, इन अंधेरो से निकलने की…
इस बसंत ने सूखा ही रखा तो क्या, उम्मीद है उसे आने वाले बारिश के बूंदों की… 
ज़िन्दगी फिर से जीने की!!!

Par fir bhi aas nahi mari hai ab tak uski, pas hi kahi lagta hai wo bazar ab bhi...
Wohi chahal-pahal kuch aise bulati hai use, jawa basant ki yaad dilati hai use!
Ummeed hai use fir usi roshni me dubne jane ki, in andhero se nikalne ki...
Is basant ne sukha hi rakkha to kya, umeed hai use ane wale barish ki bundo ki...
Zindagi fir se jeene ki!

Tuesday, January 1, 2013

Happy New Year!!!



Thousand wishes..Millions hopes...that's what New Year brings to you...
Like a seasoned politician, it spell-binds you in the web of many unfulfilled promises...
Not just that it makes you its own, with a string of broken resolutions...
New Year is nothing but a lie, a conceived notion called time...
Just like the assurances we give to ourselves and others...

There will be a tomorrow to look forward...
We shout, we scream...we protest on the streets...after-all we are students of 3 monkeys...
Nothing changes..nothing ever will...corruption and lechery has been seeded to our genes ...
We will just celebrate New Years,
A facade to forget that we are failures and villains of our own lives...
Only thing changes is the calender year!!!


Thursday, June 14, 2012

I don't...




Don’t take my silence for acceptance,
Don’t take my silence for weakness,
Don’t take my silence for your victory,
I am silent because I stopped caring a long time back,
From this hypocritical world I stand apart.

I know what you will say,
I know all your accusations and brickbats,
I have seen it all and have nothing to say,
I am silent because I stopped caring a long time back,
From this hypocritical world I stand apart.

Your standards may vary but mine don’t,
My whims are my own,
They are not up for your judgment so don’t
I am silent because I stopped caring a long time back,
From this hypocritical world I stand apart.

Saturday, February 11, 2012

मायूस सी ज़िन्दगी का जशन!



शायर तो बहोत आये, चले भी गए...
लिक्खा उन्होंने बहोत खूब, बस हम ही समझ न पाए,
नादानी मे कर बैठे कुछ ऐसी गलती, के पागल भी हमे पागल कहने लगे!


किस्मत ने सूरत-ए-हाल कुछ यूँ बयां किये, के हमारे अलफ़ाज़ भी कम पर गए...
दुनिया ने अनपढ़ कहा, हम भी खामोश रह गए!


चाहतों और नफरतों की उलझने कुछ यूँ उलझी, सुलझाते-सुलझाते ज़िन्दगी ख़त्म हो चली...
क्या खोया, क्या पाया, ये हिसाब फिर भी लगा न सके!


किसी ने कहा मौत से इतना ना दिल लगाओ, जब भी मिलती है दर्द बहोत देती है...
किसीने शायद सुना नहीं ये, कराहते रहे हम ज़िन्दगी भर कैसे!


मय्यत का मेरे इंतज़ार हमे भी है, और उनको भी...
हम ज़िन्दगी से आज़ादी का जशन  मनाएंगे, और उन्हें भी अपने साये से आज़ाद कर जायेंगे!


जशन-ए-आज़ादी का माहोल कुछ यूँ बनायेंगे, मौत भी शरमा जाएगी ये देखकर...
टुकड़ो-टुकड़ो में जो थोड़ी सी ज़िन्दगी कमाई थी हमने, जला दी वो भी आतिशबाज़ियों में!



Roman Script: 

Mayus Si Zindagi Ka Jashn!

Shayar to bahot aye, chale bhi gaye...
Likkha unhone bahot khub, bas hum hi samajh na paye.
Nadani me kar baithe kuch aisi galti, k pagal v hume pagal kahne lage!

Kismat ne surate-e-haal kuch yun bayan kiye, k humare alfaaz bhi kum par gaye...
Duniya ne anpadh kaha, hum bhi khamosh rah gaye!

Chahaton aur nafraton ki uljhane kuch yun uljhi, suljhate-suljhate zindagi khatm ho chali...
Kya khoya, kya paya, ye hisaab fir bhi laga na sake!

Kisi ne kaha maut se itna na dil lagao, jab bhi milti hai dard bahot deti hai...
Kisine shayad suna nahi ye, karahte rahe hum zindagi bhar kaise!

Mayyat ka mere intezaar hume bhi hai, aur unko bhi...
Hum zindagi se aazadi ka jashn manayenge, aur unhe bhi apne saye se azaad kar jayenge!

Jashn-e-aazadi ka mahol kuch yun banayenge, maut bhi sharma jayegi ye dekhkar...
Tukdo-tukdo me jo thodi si zindagi kamayi thi humne, jala di wo bhi aatishbaziyon me!

Tuesday, September 13, 2011

कहीं गुम हूँ मैं...



इस शोर में कहीं गुम है मेरी आवाज़....
इस भीड़ में कहीं गुम है मेरा वजूद...
इस दुनिया में कहीं गुम हूँ मैं...

इन्ही सभी में कही ढूँढना है मुझे,
नकाबों  को उतार के, असली शक्ल पहचानना है मुझे,
दबा-कुचला सा मैं, जो कहीं खो गया अपने आप में!

उन चन्द कांच के प्यालों में,
मिलता है कभी-कभी मेरा अक्स मेरे ही लिबास में,
शख्सियत भी कुछ जानी-पहचानी सी है,
फिर भी लगता है के ये मैं नहीं…
मैं तो कहीं खो गया हूँ इस हुजूम में, किसी और ही शख्सियत में!

बस अब और नहीं, काफी कुछ कह चुका हूँ मैं,
सुनेगा कौन, ये मेरी आवाज़ भी अब मेरी नहीं,
कुछ खुद की तलाश में और कुछ तलाशने खुदमे,
अपने खोये वजूद को…
अब शायद खो गया हूँ मैं, मौत की पनाह में!!!

Sunday, May 29, 2011

क्यूँ जिंदा?!



क्यूँ हूँ मैं जिंदा अब तक?
शायद मुझे चाहत है ज़िन्दगी की,
या शायद ज़िन्दगी को मेरी चाहत है!
या फिर मजबूरी है ये दुनिया की,
मुझे झेलने की, मेरे वजूद से कुछ फायदा लेने की!!

ये इल्ज़ामात गैरों पे लगाना फज़ूल है,
मेरी ज़िन्दगी किसी की अमानत तो नहीं,
ये तो वो गलती है जो मेरे वालिद ने की,
और मैंने गुज़ारी है!
अब खत्म करें भी तो करें कैसे इसे?
जिम्मेदारियों के बोझ तले यूँ दबा हूँ मैं,
नहीं टूटती ये जो ज़िन्दगी की मज़बूत बेड़ियाँ हैं!!

ये मेरी ही कमज़ोरी है,
या मेरी नासमझी है...
जो जिंदा हूँ मैं अब तक,
ज़िन्दगी जब नहीं प्यारी है!
मौत का ये बेवकूफाना इंतज़ार कैसा,
जब ज़िन्दगी और मौत मेरी ही मुट्ठी में हैं!
अब देर कैसी मेरी महबूबा को गले लगाने में,
मौत की खुशनुमा पनाहों में जाना है!!

न जी सका मैं किसी के लिए,
ना ही मर सका मैं अपने सुकून के लिए!
ये क्या कशमकश है,
ज़िन्दगी और मौत की ये कैसी रस्साकशी है?!
चन्द कदम ही तो अब मुझे उठाने है,
ज़िन्दगी से मौत की ओर...
ये तो बस आज और कल की सच्चाई है!!!

Thursday, May 19, 2011

Its time...




It's time to say good bye,
Like it or not, its time to move on...
Beyond!

There will be some unsaid words,
There will be some unheard thoughts.
There will be some regrets, some unfinished tasks...
But it's time to bring all to an end!

Don’t be sad, cause there aren’t many who have tears to shed,
Not many to share your thoughts, or appreciate the life your had…
Life is short and shortest you have got,
Just get ready to embrace the eternal peace!

Don’t worry for those who you leave behind,
All those who left you behind,
You have also moved on beyond and away from them...
Life had gone on for you,
Life will go on after you…
You are nothing, just a twig in a raging sea,
You didn’t have a meaning yesterday,
Nor will you have anything after today!

It's time to say good bye,
Like it or not, its time to move on...
Beyond!

Monday, April 11, 2011

आखिरी मंज़िल


बस ये दो-चार पल की ज़िन्दगी है प्यारे,
जी ले...
क्या पता फिर कौन तेरा रहे, ना रहे!

तुझे गम है किसका,
जो न तेरा था, ना है, ना रहेगा...
प्यार हो या दौलत, तेरी लाश के पास कुछ नहीं मिलेगा!

मैं जानता हूँ ख्वाबो के टूटने का गम क्या होता है,
मैं जानता हूँ मंज़िल के छुटने का दर्द क्या होता है...
मगर ये जो सफ़र है ज़िन्दगी का, वो नाम है चलते जाने का,
ये सोचना नहीं, के क्या खोया है और क्या कुछ पाया है!

मौत से डरता क्यूँ है मेरे दोस्त,
इसी ने तो तुझे, मुझे, सबको बांधे रक्खा है...
वरना ज़िन्दगी की क्या मजाल,
जो देश, धर्म और जाती की क्रूर दीवारों को तोड़ कर हमें जोड़े...
ज़िन्दगी ने हमें तोड़ा है, जहाँ मौत ने हमें जोड़ा है! 

Thursday, March 24, 2011

That's me!



Thrown and discarded,
used and abused,
a worthless piece of trash...
That's me!

The one who never,
could, should or would,
do anything for you....
That's me!

You thought something,
but what it was something else,
neither this, nor that...
That's  me!

You smiled, I smiled,
I smiled even to make you smile,
never shown my tears...
Thats me!

Its gud or its bad,
none could decide,
what I am, the ugly truth...
That's me!

I tried to be you, but I failed so bad,
I wanted to be me, it said permission denied...
That's me!

I wanted to live, but i was sentenced to death,
When i wished to die, death refused to be mine,
now living like dead...
That's me!

Friday, January 28, 2011

जनाज़ा


शायद मेरे ज़ेहन में एक ख्वाब सा उमरा है,
कहीं पे किसी का जनाज़ा निकला है…
कहते हैं के वो दुश्मन है,
लाश दिखती तो हमारी है!

हमने सोचा के दामन पकड़ लें किसी का,
पर आज जिसे चाहा है, कल उसी ने छोड़ा है…
मेरे दोस्त ये भूलना नहीं,
कल जो हमारा था, आज वो पराया है!

जीना तो सबको आता है,
मौत का ही एक नमूना है…
सब कहते हैं के ज़िन्दगी है,
हमने तो मौत को जिया है!

कोई आये या ना आये महफ़िल में,
हम तो यूँही बैठे है…
तमाशा हमारा है, और हमी तमाशाई हैं!
यूँ दिखावे के आंसू ना बहा ऐ दोस्त,
आखिर ये जनाज़ा हमारा है!!

Sunday, December 26, 2010

The Loser




In the pursuit of happiness I have done many things,
In the pursuit of success I have gone through many places,
In this pursuit I have lost something...
Something very dear,
Something very precious,
Something that holds great importance to me,
but doesn't mean anything to others...


You can call me a selfish jerk for this,
You can call me a egoist maniac for this,
You can call me a self-obsessed narcissist for this,
And I agree that I am a loser of highest rank...


What I am really is just a parasite,
A parasite in pursuit of freedom,
has lost what was needed the most...
During all my pursuits somewhere, sometime, somehow...
I have lost out the "I" in me!!!