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Monday, April 11, 2011

आखिरी मंज़िल


बस ये दो-चार पल की ज़िन्दगी है प्यारे,
जी ले...
क्या पता फिर कौन तेरा रहे, ना रहे!

तुझे गम है किसका,
जो न तेरा था, ना है, ना रहेगा...
प्यार हो या दौलत, तेरी लाश के पास कुछ नहीं मिलेगा!

मैं जानता हूँ ख्वाबो के टूटने का गम क्या होता है,
मैं जानता हूँ मंज़िल के छुटने का दर्द क्या होता है...
मगर ये जो सफ़र है ज़िन्दगी का, वो नाम है चलते जाने का,
ये सोचना नहीं, के क्या खोया है और क्या कुछ पाया है!

मौत से डरता क्यूँ है मेरे दोस्त,
इसी ने तो तुझे, मुझे, सबको बांधे रक्खा है...
वरना ज़िन्दगी की क्या मजाल,
जो देश, धर्म और जाती की क्रूर दीवारों को तोड़ कर हमें जोड़े...
ज़िन्दगी ने हमें तोड़ा है, जहाँ मौत ने हमें जोड़ा है! 

2 comments:

Sammy SKJ said...

Its creative. :-) n thanks for the translation.

LONE WOLF said...

welcome :)