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Thursday, January 2, 2020

ठंड बहोत है!

ठंड बहोत है, मौसम में या दिलों में?
जम गया है खून, पानी जैसे, सड़कों पे या दिलों में?
कुछ लोग आग लगा के खुश हैं, देश में या दिलों में?
दोस्त, पड़ोसी, सब अजनबी, ये दूरियां घरों में या दिलों में?
तू कौन है, मैं कौन हूं, नकाब चहरों पे या दिलों पे?
ये नफरत है या फितरत, ज़हर किताबों में या दिलों में?
जश्न ये नए साल का, सिर्फ तारीख़ के पन्नों में या दिलों में? 
खुशी मनाएं किस बात का, झूठे, वादों पे या दिलों पे?
बातें करते सभी हैं, मगर यकीन, शब्दों पे या दिलों पे?
मसीहा हैं, रहनुमा हैं, खुदा भी है, महलों में या दिलों में?
मुझे खामोश करने में लगे हो, गलती मुझमें है या दिलों में?

Monday, January 1, 2018

नया साल मुबारक।



आज फिर वक़्त हमें उसी दोराहे पर लाया है,
जहां कुछ छूटता है, कुछ मिलने के वादे के साथ।

बारह कागजों के जो पुलिंदे हमने सजाये थे,
वो कटके बिखरने को हैं, घड़ी के हाथ।
हाँ, एक और नया पुलिंदा तैयार है, चंद कागजों और कई कसमों के साथ।

मगर इस दोराहे पर तो हर बार यूँही आके मिलते हैं,
कुछ ख्वाब, कुछ उम्मीदों,  कुछ वादों के साथ,
जो बदल गये टूटे, अधूरी, झूठे अल्फ़ाज़ों में,
उगते सूरज और ढलते चाँद के साथ।

फिर से तैयार हैं हम वक़्त का एक और सफर तय करने को,
अपने वजूद को तारीखों का मोहताज करने को,
हाथों में लेकर जाम, इस घड़ी के नाम, आप दोस्तों के साथ।।