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Friday, January 28, 2011

जनाज़ा


शायद मेरे ज़ेहन में एक ख्वाब सा उमरा है,
कहीं पे किसी का जनाज़ा निकला है…
कहते हैं के वो दुश्मन है,
लाश दिखती तो हमारी है!

हमने सोचा के दामन पकड़ लें किसी का,
पर आज जिसे चाहा है, कल उसी ने छोड़ा है…
मेरे दोस्त ये भूलना नहीं,
कल जो हमारा था, आज वो पराया है!

जीना तो सबको आता है,
मौत का ही एक नमूना है…
सब कहते हैं के ज़िन्दगी है,
हमने तो मौत को जिया है!

कोई आये या ना आये महफ़िल में,
हम तो यूँही बैठे है…
तमाशा हमारा है, और हमी तमाशाई हैं!
यूँ दिखावे के आंसू ना बहा ऐ दोस्त,
आखिर ये जनाज़ा हमारा है!!

7 comments:

Aakriti said...

did sumthing happen in ur life that was so depressing ??
i like this line :
तमाशा हमारा है, और हमी तमाशाई हैं! and
this one:
हमने तो मौत को जिया है!

temme how did u think if "living" death..?

LONE WOLF said...

thanks aakriti...not all writing is self driven...mine r just my insane ramblings!!

life when becomes a meaningless existance...its more akin to death!!

अभिषेक पाटनी said...

सोच गहरी पर शब्दों का चयन...और कविता के लिए ज़रूरी कई तत्वों की कमी साफ दिखती है...लेकिन एक बेहतरीन शुरूआत के तौर पर मैं दाद देता हूं....

LONE WOLF said...

thanks patniji... hum to bas yunhi kuch likh dete rahte hai...kabhi dhyan deke kuch nahi kia!!

Sammy SKJ said...

nice.. :)

Krishna Kant Singh Rajpoot said...

This is really a ultimate poem...i like SirG.....

LONE WOLF said...

thanks Krishna :)