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Friday, September 25, 2009

इल्जाम और सजा



हमपे इल्जाम लगाना ये तो दुनिया की आदत पुरानी है.

हर इल्जाम को अब खामोशी से मान लेना हमने भी सीख ली है.

वैसे भी क्या करना खुदको बेगुनाह साबित करके, जब ता-उम्र गुनाहगारों की कैद में ही गुजारनी है.

सोचता हूँ अब तो कोई गुनाह कर ही डालूं, शायद तब मन की मुराद पूरी हो जाये,

आखिर सजा--मौत से ही तो मेरे उम्र-कैद से रिहाई तारीख मुकम्मल होनी है!

Saturday, August 29, 2009

क्यूँ नहीं...??


कीतनी शराब पीयूू मैं के इस दुनीया का हर झूठा सच डूब जाये...
कीतने नकाब उतारूं मैं के सजे-सवंरे चहरो में छुपे हैवान बाहर आजाएँ...
कीतना धुआं उठेगा और इस जलते सीने से के हर बेईमान दोस्त अपनी शक्ल छुपा पाए...
पूछता हूँ सबसे बस ये एक ही सवाल की कीतनी बार मरुँ मैं के अपनों में छिपे हर बेगाने के नकली आंसूं सूख जाएँ...!!

खोजते-खोजते इन सवालों के जवाब कुछ और भी सवाल मेरे ज़हन पे उठ आये...
क्यूँ नहीं काट डाला उन सब हाथों को जो दोस्ती के लिए बढ़ आये...
क्यूँ नहीं जला डाला उन सब खूबसूरत चहरों को जो मुस्कुराता हुआ मेरे सामने आये...
क्यूँ ढूंढ़ता हूँ सच को जब ये ज़िंदगी, ये दुनीया सब झूठी नज़र आये...
क्यूँ मर नहीं गया था उसी दीन जब अपन ही मुझे पराया कर आये...
आखीर क्यूँ है ये बेमानी से सवाल-जवाब जब मेरी बाते सुनने का होश कीसी को नहीं आये..!!

Wednesday, July 8, 2009

ज़िन्दगी का सफ़र



ऐसे तय करना है मुझे इस सफ़र को जिसे शायर ने कहा ज़िन्दगी का अजीब सफ़र है.
नहीं सोचना की ये सफ़र है हकीकत या कोई ख्वाब, जब सफ़र के आखिर में सच को सामने आना ही है.
नहीं याद करना मिलते और बिछड़ते हमराहों को, जब मंजिल पे अकेले ही पहुचना है.
नहीं करनी किसी चीज की तलाश इस राहेसफ़र में, जब साथ कुछ रहना नहीं है.
नहीं भटकना यूँ इधर-उधर जब आखरी मुकाम मुकम्मल है.
नहीं करना जद्दो-जहद एक आशियाँ ढूँढने की, जब सफ़र में रुकने की फुर्सत नहीं है.
चैन के दो पल भी नहीं चाहता बीच राह पे, जब मंजिल पे चिरनिद्रा की बेदी बिछी है.
बस बहते जाना है मुझे वक़्त के बहाव में, और इंतज़ार उस पल का जो इस सफ़र की अंतिम घरी है!

Sunday, June 7, 2009

खोया मुकाम...


ऐसा लगता है कुछ टूट सा गया है...
पिछले मोड़ पे कोई मुकाम छूट सा गया है...
पीछे मुडके वापिस जाने की कोशिश भी कर ली मैंने,
पर वापसी की राह कही खो सा गया है...

कोई पुकार लेता हमे वहा से शायद तो कदम बढाता भी मैं पर,
मेरे साथ मेरी यादों ने भी वहा से रुखसत लिया है...
अब आगे बढूँ ये भी मुमकिन नही लगता,
मेरे आगे कोई राह भी तो दीखता नही है...
अब तो मेरे साथ वक्त भी ठहर सा गया है,
अंधेरे जंगल में वो भी कही राह भटक सा गया है...
शायद मौत का इंतज़ार भी अब बेमानी सा है,
वो भी शायद किसी और ही राह बढ़ गया है!

Thursday, June 4, 2009

जिंदगी के कुछ अनसुलझे सवाल!


ऐसा क्यूँ है के जिस सवाल का जवाब नही होता, वही चाहता हूँ मै पूछना?
ऐसा क्यूँ है के जो बात कहनी है उसके लिए सही शब्द नही चुन पता?
ऐसा क्यूँ है के जानता हु कोई कवि नही मै, फ़िर भी यूँ ही बेमतलब कलम रहता हूँ चलता?
ऐसा क्यों है के उम्मीदी के अंधेरे में भी किसी रौशनी का इंतज़ार ख़त्म नही होता?
ऐसा क्यूँ है के जिसकी तलाश है वो खुदा कही नही मिलता?
ऐसा क्यूँ है के दिल तो था पत्थर का, पर लगता है सीने में कोई खंजर सा चुभा हुआ?
ऐसा क्यूँ है के जब आँखों में आंसू नही फ़िर भी कुछ पलकों से बहार छलकने को तरसता?
ऐसा क्यूँ है के किसी को दो पल की खुशी देने क काबिल नही मै, फ़िर भी ख़ुद ही मुस्कुराने की कोशिश हु करता?
ऐसा क्यूँ है के अकेले रहना ही बेहतर जनके भी दोस्तों का साथ नही छोड़ सकता?
ऐसा क्यूँ है के जनता हु मौत में ही मिलेगी शान्ति मुझे, फ़िर भी जीना नही छोड़ता?
ऐसा क्यूँ है के जिस सवाल का जवाब नही होता, वही चाहता हूँ पूछना?


Tuesday, June 2, 2009

राहे ज़िन्दगी




थक गया हु राहे ज़िन्दगी में चलते-चलते, ठोकरें खाते-खाते और संभलते-संभलते!



कोई साया भी नहीं जो ठहर लूँ दो पल को, कोई हमसफ़र भी नहीं दो बाते करने को साथ में!



अब तो खो गया है मंज़िल का पता भी कही, भटक गया हूँ राह पिछले किसी मोड़ पे!






न जाने फिर भी क्यूँ चला जा रहा हूँ मै, यूँ ही भटकता हुआ इस अनजान वीराने में…



अपने कदमो की आहात भी एक शोर सी लगती है अब, आदत जो हो गयी है खामोश सन्नाटे की!



अब तो दिल की हर ख्वाहिश दफना दी है मैने, छुपा था जो हर हसरत में मेरी, कुछ खोने या कुछ न पाने का डर॥



बस एक ही तम्मान्ना लिए अब तो आगे बढ़ रहा हूँ मै, शायद हो अगला मोड़ ही इस राह का अंत!!






Saturday, February 28, 2009

कशमकश ज़िन्दगी की!

कहनी है शायद कोई कहानी मगर, मैं बोलता भी नहीं, कोई समझता भी नहीं!
जाना है कही दूर ज़माने से मगर, चलता भी नहीं, मैं ठहरता भी नहीं!
खोया हूँ कही अपने आप में मगर, कोई मिलता भी नहीं, मैं ढूंढ़ता भी नहीं!
रात का साया है हर ओर मगर, सोता भी नहीं, मैं जगता भी नहीं!
दिल में कुछ टीस सी है मगर, रोता भी नहीं, मै हँसता भी नहीं!
ना जाने क्या चाहता हूँ मगर, कुछ मिलता भी नहीं, मै कुछ खोता भी नहीं!
ज़िन्दगी यूँही गुज़रती नहीं मगर, मरता भी नहीं, मै जीता भी नहीं!!!


--------किसी दुश्मन से ज़िन्दगी मांगी थी शायद, जो ज़िन्दगी ही दुश्मन हो गई है!
किसी दोस्त से मौत मांगी थी शायद, जो मौत भी बेवफा हो गई है!!