Wednesday, July 8, 2009
ज़िन्दगी का सफ़र
ऐसे तय करना है मुझे इस सफ़र को जिसे शायर ने कहा ज़िन्दगी का अजीब सफ़र है.
नहीं सोचना की ये सफ़र है हकीकत या कोई ख्वाब, जब सफ़र के आखिर में सच को सामने आना ही है.
नहीं याद करना मिलते और बिछड़ते हमराहों को, जब मंजिल पे अकेले ही पहुचना है.
नहीं करनी किसी चीज की तलाश इस राहेसफ़र में, जब साथ कुछ रहना नहीं है.
नहीं भटकना यूँ इधर-उधर जब आखरी मुकाम मुकम्मल है.
नहीं करना जद्दो-जहद एक आशियाँ ढूँढने की, जब सफ़र में रुकने की फुर्सत नहीं है.
चैन के दो पल भी नहीं चाहता बीच राह पे, जब मंजिल पे चिरनिद्रा की बेदी बिछी है.
बस बहते जाना है मुझे वक़्त के बहाव में, और इंतज़ार उस पल का जो इस सफ़र की अंतिम घरी है!
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5 comments:
wolfie.. thatz profound :(>:D<
thnks nandzeee >:D< but y da sad face?
different than the others.... but no doubt... good work. :) keep it up
thnks sammyji....ur commnts alwys r very encouraging :D
because its deep:)
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