इल्जाम और सजा
हमपे इल्जाम लगाना ये तो दुनिया की आदत पुरानी है.हर इल्जाम को अब खामोशी से मान लेना हमने भी सीख ली है.वैसे भी क्या करना खुदको बेगुनाह साबित करके, जब ता-उम्र गुनाहगारों की कैद में ही गुजारनी है.सोचता हूँ अब तो कोई गुनाह कर ही डालूं, शायद तब मन की मुराद पूरी हो जाये,आखिर सजा-ए-मौत से ही तो मेरे उम्र-कैद से रिहाई तारीख मुकम्मल होनी है!
5 comments:
a bit confusing on the whole ... :-??
and i must admit its strange...
sorry.. :)
par. hum ispe sehmat nahi hai ... guna kiye bina saza bhukat rahe hai .. iska matleb ye toh nahi k admi sochey aao.. ggunah kar hi daltey hai .. :)
thnks for ur comments both of u, they hav really made me think... >:D< :)
if i go on reading yur blog,ill get 100 on 100 in my hindi exam :)
>:D<
rofl...chalo mere blog ka koi constructive use v hai den =)) thnkiez >:D<
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