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Saturday, August 29, 2009

क्यूँ नहीं...??


कीतनी शराब पीयूू मैं के इस दुनीया का हर झूठा सच डूब जाये...
कीतने नकाब उतारूं मैं के सजे-सवंरे चहरो में छुपे हैवान बाहर आजाएँ...
कीतना धुआं उठेगा और इस जलते सीने से के हर बेईमान दोस्त अपनी शक्ल छुपा पाए...
पूछता हूँ सबसे बस ये एक ही सवाल की कीतनी बार मरुँ मैं के अपनों में छिपे हर बेगाने के नकली आंसूं सूख जाएँ...!!

खोजते-खोजते इन सवालों के जवाब कुछ और भी सवाल मेरे ज़हन पे उठ आये...
क्यूँ नहीं काट डाला उन सब हाथों को जो दोस्ती के लिए बढ़ आये...
क्यूँ नहीं जला डाला उन सब खूबसूरत चहरों को जो मुस्कुराता हुआ मेरे सामने आये...
क्यूँ ढूंढ़ता हूँ सच को जब ये ज़िंदगी, ये दुनीया सब झूठी नज़र आये...
क्यूँ मर नहीं गया था उसी दीन जब अपन ही मुझे पराया कर आये...
आखीर क्यूँ है ये बेमानी से सवाल-जवाब जब मेरी बाते सुनने का होश कीसी को नहीं आये..!!

2 comments:

Unknown said...

wolfie.. i have got no words.. . aisa lagta hai ki seedhe dil se nikalte huye aae ho ye lafz... :)

LONE WOLF said...

thnks nandzeee >:D<