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Tuesday, June 2, 2009

राहे ज़िन्दगी




थक गया हु राहे ज़िन्दगी में चलते-चलते, ठोकरें खाते-खाते और संभलते-संभलते!



कोई साया भी नहीं जो ठहर लूँ दो पल को, कोई हमसफ़र भी नहीं दो बाते करने को साथ में!



अब तो खो गया है मंज़िल का पता भी कही, भटक गया हूँ राह पिछले किसी मोड़ पे!






न जाने फिर भी क्यूँ चला जा रहा हूँ मै, यूँ ही भटकता हुआ इस अनजान वीराने में…



अपने कदमो की आहात भी एक शोर सी लगती है अब, आदत जो हो गयी है खामोश सन्नाटे की!



अब तो दिल की हर ख्वाहिश दफना दी है मैने, छुपा था जो हर हसरत में मेरी, कुछ खोने या कुछ न पाने का डर॥



बस एक ही तम्मान्ना लिए अब तो आगे बढ़ रहा हूँ मै, शायद हो अगला मोड़ ही इस राह का अंत!!






1 comment:

Arvedula said...

raah ka aanth kyon dhoond rahe ho?? shaayad agle mood pe koi humsafar mil jaye....

uss hum safar ke saath zindagi khoobsoorat ban jaye....

andheri raato ki chandini ban jaye... sannate mein kahi door goonjthi hasi miljaye....



nice one wolfie....