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Thursday, November 26, 2009

Wake Up!!!



You didn’t wake up when your trains got blasted!
You didn’t wake up when your temples and mosques were attacked!
You didn’t wake up when your people were killed in the streets and markets!
You woke up when your elites got the bullets and their five star comfort was invaded!
And what a wake up it has been…
Big words of politicians, celebrities and socialites lighting candles, talk shows on media featuring film stars and media just counting the TRP of tragedy!
Has anyone here yet woken up to the real threat, the fear that the common man daily feels!
I don’t think so; I just see an anniversary of a shameful day being celebrated as a National day!!!

Tuesday, November 10, 2009

मैं क्यूँ मानु धर्म को?




मैं क्यूँ पूजूं पत्थर की मूरत को जिसे किसी इंसान ने ही सूरत दी हो?
मैं क्यूँ मानु सही उस राह को जिसे किसी इंसान ही ने  खुदा की राह कहा हो?
क्यों कहूँ मैं भगवान् उस पुरषोत्तम को जिसमे गलतियाँ भरी हो?
जब हर इंसान में ही बसे इश्वर तो क्यों मानु उसे पैगम्बर जो खुदको इश्वर-पुत्र  कहता हो?
धर्म के बाज़ार में हर विक्रेता कहे मेरा खुदा बड़ा है …
मैं क्यूँ  खरीदूं ऐसी वस्तु को जिसका मोल किसी भाई का खून हो?
अगर धर्म है खुदा की नेमत तो मैं क्यूँ मानु उसकी इंसानी परिभाषा को?

Tuesday, November 3, 2009

Where Am I??


I am there with everyone, but I am not with myself…

I see everyone’s good and bad sides but I can’t see myself…

I see everyone thinking and doing but I don’t think I am able to do anything myself…

I see everyone happy or sad but I don’t feel anything myself…

I see everyone here and there but I can’t find myself…

I see everyone living or dying but I am not alive enough to die myself…

Monday, November 2, 2009

Accusations!!



Its the darkness they accuse me of...
Its the harshness they accuse me of...
Its the rashness they accuse me of...
Its the brashness they accuse me of...

But have they ever seen themselves while they write me off...
They would look different once they take the glasses of self-indulgence off...
How dark, harsh and rash their wold is made of..
and I am nothing but a mirror for them to see what they are actually made of!!!

Friday, September 25, 2009

इल्जाम और सजा



हमपे इल्जाम लगाना ये तो दुनिया की आदत पुरानी है.

हर इल्जाम को अब खामोशी से मान लेना हमने भी सीख ली है.

वैसे भी क्या करना खुदको बेगुनाह साबित करके, जब ता-उम्र गुनाहगारों की कैद में ही गुजारनी है.

सोचता हूँ अब तो कोई गुनाह कर ही डालूं, शायद तब मन की मुराद पूरी हो जाये,

आखिर सजा--मौत से ही तो मेरे उम्र-कैद से रिहाई तारीख मुकम्मल होनी है!

Saturday, August 29, 2009

क्यूँ नहीं...??


कीतनी शराब पीयूू मैं के इस दुनीया का हर झूठा सच डूब जाये...
कीतने नकाब उतारूं मैं के सजे-सवंरे चहरो में छुपे हैवान बाहर आजाएँ...
कीतना धुआं उठेगा और इस जलते सीने से के हर बेईमान दोस्त अपनी शक्ल छुपा पाए...
पूछता हूँ सबसे बस ये एक ही सवाल की कीतनी बार मरुँ मैं के अपनों में छिपे हर बेगाने के नकली आंसूं सूख जाएँ...!!

खोजते-खोजते इन सवालों के जवाब कुछ और भी सवाल मेरे ज़हन पे उठ आये...
क्यूँ नहीं काट डाला उन सब हाथों को जो दोस्ती के लिए बढ़ आये...
क्यूँ नहीं जला डाला उन सब खूबसूरत चहरों को जो मुस्कुराता हुआ मेरे सामने आये...
क्यूँ ढूंढ़ता हूँ सच को जब ये ज़िंदगी, ये दुनीया सब झूठी नज़र आये...
क्यूँ मर नहीं गया था उसी दीन जब अपन ही मुझे पराया कर आये...
आखीर क्यूँ है ये बेमानी से सवाल-जवाब जब मेरी बाते सुनने का होश कीसी को नहीं आये..!!

Wednesday, July 8, 2009

ज़िन्दगी का सफ़र



ऐसे तय करना है मुझे इस सफ़र को जिसे शायर ने कहा ज़िन्दगी का अजीब सफ़र है.
नहीं सोचना की ये सफ़र है हकीकत या कोई ख्वाब, जब सफ़र के आखिर में सच को सामने आना ही है.
नहीं याद करना मिलते और बिछड़ते हमराहों को, जब मंजिल पे अकेले ही पहुचना है.
नहीं करनी किसी चीज की तलाश इस राहेसफ़र में, जब साथ कुछ रहना नहीं है.
नहीं भटकना यूँ इधर-उधर जब आखरी मुकाम मुकम्मल है.
नहीं करना जद्दो-जहद एक आशियाँ ढूँढने की, जब सफ़र में रुकने की फुर्सत नहीं है.
चैन के दो पल भी नहीं चाहता बीच राह पे, जब मंजिल पे चिरनिद्रा की बेदी बिछी है.
बस बहते जाना है मुझे वक़्त के बहाव में, और इंतज़ार उस पल का जो इस सफ़र की अंतिम घरी है!