मैं क्यूँ पूजूं पत्थर की मूरत को जिसे किसी इंसान ने ही सूरत दी हो?
मैं क्यूँ मानु सही उस राह को जिसे किसी इंसान ही ने खुदा की राह कहा हो?
क्यों कहूँ मैं भगवान् उस पुरषोत्तम को जिसमे गलतियाँ भरी हो?
जब हर इंसान में ही बसे इश्वर तो क्यों मानु उसे पैगम्बर जो खुदको इश्वर-पुत्र कहता हो?
धर्म के बाज़ार में हर विक्रेता कहे मेरा खुदा बड़ा है …
मैं क्यूँ खरीदूं ऐसी वस्तु को जिसका मोल किसी भाई का खून हो?
अगर धर्म है खुदा की नेमत तो मैं क्यूँ मानु उसकी इंसानी परिभाषा को?
2 comments:
whoa ..wolfie~! incredible! i truly loved it ...! very true.. indeed!
Thankies nandzeee >:D<
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