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Thursday, October 25, 2018

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो!




















रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
हम सबके अंदर एक रावण है,
रंगीन मुखौटों के पीछे बेशर्म ख्वाहिशों का अस्लाह है।

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
सीता हो या राम बदनाम कोई भी हो सकता है,
बस उंगली उठा कर बातों के तीर चलाना बड़ा आसान है।

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
पटरियों पर दौड़ती भी एक आग है,
ये आग जो गुज़र जाए ज़िंदगियों पर तो परिवार बर्बाद है।

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
हर एक पत्थर सेतु बंधन में एक किरदार है,
आंकड़ों की भीड़ में कुचल जाए जो वो भी इंसान है।

रावण को जलाने में इतने मसरूफ़ हो के भूल जाते हो,
हर उपदेश के पीछे एक कहानी है,
मैं कब कहता हूं, किसे कहता हूं और क्यूं कहता हूं, 
वो जानना ज़रूरी नहीं, समझ आए तो बेहतर,
वरना मैं कोई भगवान नहीं।।