कोठे पे आज बड़ी रौनक है, माहौल ऐसा के जैसे कोई त्यौहार हो। पर जिसके लिए ये रौनक है वो तो ऐसे दुबक के बैठी है जैसे कोई बकरा हलाल या बलि होने से पहले होता हो। आज उसकी पहली रात जो है। बोली लगेगी उसके जिस्म के पहले इस्तेमाल पे।
उस कोठे की रौनक देख आज तीन जोड़ी पैर अलग अलग दिशाओ से बढ़ रहे हैं, उस भीड़ का हिस्सा बनने जो पहले ही वहां मौजूद है…
राम की मेहनत आज बड़ा रंग लायी है, अपने संघ दल में आज बड़ी इज्ज़त कमाई है उसने। महंत जी ने कहा के धर्म और संस्कृति का सच्चा रक्षक बन गया है वो आज। विदेशी अश्लील प्रभाव में फंसे नव युवक-युवतिओं को आज उसने सही राह दिखाई। उनमे से एक तो कुछ ज़्यादा ही हीरो बन रहा था, अंग्रेजी में वो और उसकी माशूका न जाने क्या-क्या बोले जा रहे थे, "moral policing" जैसे बड़े बड़े शब्द। राम को गुस्सा तब आया जब उन्होंने हिन्दू धर्म के खिलाफ कुछ बोल दिया। यूँ तो राम को ये नहीं पता के उसके अपने माँ-बाप कौन है, महंत जी ने उसे बचपन से पाला है। हिन्दू धर्म उसके लिए धर्म नहीं, जीने का तरीका है। महंत जी उसे दल में शामील करते समय बोला था के हिन्दू धर्म सबसे महान है, इसकी रक्षा देशी और विदेशी दोनों ताकतों से करना एक सच्चे हिन्दू का कर्त्तव्य है।
गुस्से में राम ने उस लड़के-लड़की को डंडे और रॉड से खूब पीटा, उसके साथिओ ने भी उसका पूरा साथ दिया। राम ने तो शायद उन्हें मार ही दिया होगा पर पुलिस आने से उन्हें वहां से जाना पड़ा। महंत जी की प्रशंशा और साथिओ की वाह-वाही ने आज उसका सीना फुला दिया। आज रात तो फिर पार्टी बनती है। उन्ही साथिओं से उसने सुना के कोठे पे आज कोई नया माल आया है...
अहमद को आज कुछ अलग बोटी की तलाश है, रोज़-रोज़ जानवरों को हलाल करते-करते आज उसमे एक अलग जानवर की भूख़ सवार हो गयी थी। इन्सानी जिस्म की भूख कुछ अलग ही होती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे एक जानवर को हलाल करने और एक इंसान की गर्दन काटने में होता है। अहमद को ये फरक तो उस रोज़ ही पता चल गया था जिस रोज़ पिछले दंगो में उसने पहली बार एक इंसान को हलाल किया था। मौलवी साहब ने कहा था के काफ़िर की जान लेना अल्लाह की इबादत है, और सच्चे मुसलमान का फ़र्ज़। उनकी बात तो अहमद के लिए अल्लाह का फरमान था।
अहमद की हवस की भूख आज वैसे ही उसपे सवार थी जैसे उस दिन उसके सर खून सवार था। ये एक ऐसी भूख थी जो उसकी बीवी नहीं मिटा पा रही थी अब। उसे लगा था दूसरी शादी करते वक़्त की उसकी हवस नई बीवी मिटा देगी। आखिर १७ साल की कमसिन कली थी वो। उसे देखा था पहली बार जिसदिन उसी दिन से उसे पाने की ज़िद सवार हो गयी थी. पता करने पे पता लगा के वो तो रिश्तेदारी में ही है। उसके अब्बु भी कोई कमाऊ लड़का खोज रहे है उसके लिए, पर दहेज़ लायक उनके पास कुछ नहीं था अपनी पांच और बेटियों की शादी कराने के बाद। फिर क्या था बस तीन अल्फ़ाज़ बोलने जितना ही वक़्त लगा उसे पहली बीवी छोड़ नयी बीवी घर लाने में। आखिर दूसरी शादी करना कोई गुनाह तो नहीं, उसके अब्बा ने तो तीन-तीन शादियां करी थी एक वारिस की आस में। पर जब फिर भी खुदा की नेमत ना हुई और हकीम साहब ने बताया के उनसे बच्चा न होगा तो एक रात चुपके से अहमद को गोद ले लिया। अपनी तरह पांच वक़्त का नमाज़ी, एक सच्चा मुसलमान बनाया।
अहमद की दूसरी शादी को साल भर से उपर हो गए अब तो, उसकी बीवी ने दो महीने पहले ही अहमद के बच्चे को जन्म दिया। गुज़रे वक़्त और बच्चे के बाद अब उसकी बीवी की कशिश भी जाती लग रही थी अहमद को। अब उसमे वो गर्मी नहीं रही जिसकी अहमद को भूख हो। उपर से बच्चे की तीमारदारी में उसे वक़्त ही कहां शौहर के लिए?! आज दूकान पे जब कुछ ग्राहकों की बातों से पता चला के लाइन पार कोठे पे एक नयी बकरी हलाल होने को है, तो सुनके अहमद की रगों में फिर से वही गर्म खून उबल गया और दूकान बंद कर उसके कदम घर की जगह कोठे की राह बढ़ चले...
जॉन को अभी उसके जानने वाले शायद पहचान भी ना पाये। वो जो चर्च का छोटा पादरी था आज एक अलग भेस में था। आज उसकी मंज़िल चर्च नहीं कही और थी। आज रात उसके कदमों की सुबह ही तय हो गयी थी, जब कॉन्फेशन बॉक्स में वो बैठा उस औरत की बात सुनने।
आज चर्च के बड़े पादरी जिन्होंने जॉन को बचपन से पाला था वो बीमार थे तो उनकी जगह जॉन चर्च के कार्यक्रमों का संचालन कर रहा था। जब वो औरत जो यूँ तो क्रिस्चियन नहीं लग रही थी वहां आयी और कॉन्फेशन बॉक्स की तरफ बढ़ी तो जॉन ने बड़े पादरी की जगह वहां भी ली। उसकी बातों से पता चला के वो औरत पास के कोठों में से एक से आई वेश्या थी। उसे आज वक़्त ने बड़े अजीब मुकाम पे ला खड़ा किया था। आज उसकी बेटी की पहली रात थी। उस औरत की बिल्कुल मर्ज़ी नहीं थी की उसकी बेटी भी ये गन्दा काम करे, उसके जिस्म को भी लोग नोच खाए जैसे सालों से उसकी माँ के साथ हुआ। पर एक वेश्या की बात कब कहाँ सुनी गयी! ना उस दिन जिस दिन उसे उस कोठे पे बेचा गया था, ना उस दिन जब जब उसके तिड़वा बच्चों को उससे छीन के न जाने कहाँ दे दिया गया। आखिर एक कोठे पे मर्दजात बच्चों का क्या काम? काश आज उसके तीनों बेटे उसके साथ होते तो शायद अपनी बहन को यूं सरे बाजार नीलाम ना होने देते। इन्हीं गमो में डूबी वो बेबस औरत अपने और अपने बच्चों की किस्मत पर रो रही थी।
उस रोती हुई औरत की कहानी में मगर जॉन को एक अलग सा मज़ा मिला। कुंवारी लड़किओं का शौक था उसे, और पादरी होते हुए ऐसे मौके उसे रोज़ कहाँ मिलते हैं। पिछली बार एक जवान नन के चक्कर मे वो पकड़े जाते-जाते बच गया था। वो नन मां बन गयी थी। बात फादर को पता चले या बाहर जाये, इसके पहले ही जॉन ने उस नन को एक रात दूर गाँव ले जाकर मार दिया। जॉन को तो बस कुंवारी का नयापन और मासूमियत पसंद थी, उसी को लूटने में उसे मज़ा आता था। अपने इस शौक को पूरा करने के मौके कम ही आते थे। वो तो बस कभी-कभी चर्च में साफ़-सफ़ाई के लिए आने वाले गांव के लड़को तक से काम चला लेता था। आज फिर मगर महीनो बाद एक कुंवारी लड़की का मज़ा लेने का मौका मिला है। आज वो किसी कीमत पे ये मौका नहीं छोड़ेगा। बोली चाहे कितनी भी लगे उसकी बोली सबसे ऊपर होगी। ...
बाजार अब अपने शबाब पे है, ख़ास खरीदारों का स्वागत करते हुए। देखना ये है अब कौन लगायेगा सबसे बड़ी बोली?!
Roman Script:
Kothe pe aaj badi ronak hai. Mahaul aisa k jaise koi tyohar ho. Par jiske liye ye ronak hai wo to aise dubk ke baithi hai jaise koi bakra halal ya bali hone se pahle hota ho! Aj uski pahli raat jo hai! Boli lagegi uske jism k pahle istemaal pe.
Us kothe ki ronak dekh aj 3 jodi pair alag alag dishao se badh rahe hai, us bheed ka hissa banne jo pahle hi waha maujood hai...
Raam ki mehnat aj bada rang layi hai, apne sangh dal me aaj badi ijjat kamai hai usne. Mahant ji ne kaha k dharm aur sankriti ka sachcha rakshak ban gaya hai wo aj. Videshi ashleel prabhav me fase kai nav yuvak-yuvatio ko aj usne sahi raah dikhai. Unme se ek to kuch zyada hi hero ban raha tha, angereji me wo aur uski mashooka na jane kya-kya bole ja rahe the, "moral policing" jaise bade bade shabd. Raam ko gussa tab aya jab unhone Hindu dharam k khilaf kuch bol dia. Yun to raam ko ye nahi pata k uske apne maa-baap kon hai par bachpan se hi Mahant ji ne use bachpan se pala hai. Hindu dharm uske lie dharm nahi jine ka tarika hai. Mahant ji use dal me shamil karte waqt bola tha ke Hindu dharm sabse mahaan hai, iski raksha deshi aur videsi dono takato se karna ek sachche Hindu ka kartavya hai.
Gusse me raam ne us ladke-ladki ko dande aur rod se khub pita, uske sathio ne bhi uska pura sath diya. Raam ne to shayad unhe maar hi dia hoga par police k aane se unhe janna pada. Mahant ji ki prashansa aur sathio ki Waah-wahi ne aj uska seena fula dia. Aj to raat fir party banti hai. Unhi sathio se usne suna ke kothe pe aj koi naya maal aya hai...
Ahmad ko aj kuch alag boti ki talaash hai, roz-roz janwaro ko halaal karte-karte aj usme ek alag janwar ki bhookh sawar ho gayi thi. Insani jism ki bhook kuch alag hi hoti hai, bilkool waise hi jaise ek janwar ko halal karne aur ek insaan ki gardan katne me hota hai. Ahmad ko ye fark to us roz hi pata chal gaya tha jis roz pichle dango me usne pahli baar ek insaan ko halaal kia tha. Maulvi sahab ne kaha tha ke kafir ki jaan lena allah ki ibadat hai, aur sachche musalman ka farz. Unki baat to Ahmad k lie allah ka farmaan tha.
Ahmad ki hawas ki bhook aj waise hi uspe sawar thi jaise us din uske sir khoon sawar tha. Ye aisi bhook thi jo uski biwi nahi mita pa rahi thi ab. Use laga tha dusri shaadi karte waqt ki uski hawas nayi biwi mita degi. Akhir 17 saal ki kamsin kali thi wo. Use dekha tha pahli baar jisdin usi din se use pane ki zid sawar ho gayi thi. Pata karne pe pata laga ke wo to rishtedari me hi hai. Uske abbu bhi koi kamau ladka khoj rahe the uske liye, par dahej layak unke pas kuch nahi tha apni paanch aur betio ki shaadi karane kebaad. Fir kya tha bas teen alfaaz bolne jitna hi waqt laga use pahli biwi chod nayi biwi ghar lane me. Akhir dusri shaadi karna koi gunaah to nahi, uske abba ne to teen-teen shaadiya kari thi ek waris ki aas me. Par jab fir bhi khuda ki nemat na hui aur hakeem sahab ne bataya k unse baccha na hoga to unhone ek raat chupke se Ahmad ko god le lia. Apni tarah 5 waqt ka namaazi, ek sachcha musalman banaya.
Ahmad ki dusri shaadi ko saal bhar se upar ho gaye ab to, uski biwi ne do mahine pahle hi Ahmad k bacche ko janm dia. Waqt aur bacche k baad ab uski kashish bhi jaati lag rahi thi Ahmad ko. ab usme wo garmi nahi rahi jiski use bhook ho. Upar se bacche ki timardari me use waqt hi kahan shohar k lie?!. Aj dukaan pe jab kuch grahako ki baaton se pata chala ke line par kothe pe ek nayi bakri halal hone ko hai, to sunke Ahmad ki rago me firse wahi garm khoon ubal gaya aur dukaan band kar uske kadam ghar ki jagah kothe ki raah badh chale...
John ko aj uske janne wale shayad pahchan bhi na paye. Wo jo church ka chota padri tha aj ek alag bhes me tha. Aj uski manzil church nahi kahi aur thi. Aj raat uske kamdo ki disha subah hi tay ho gayi thi, jab confession box me wo baitha us aurat ki baat sunne.
Aj church ke bade padri jinhone use bachpan se pala tha wo bimar the to unki jagah John church ke karyakramo ka sanchalan kar raha tha. Jab wo aurat jo yun to Christian nahin lag rahi thi waha ayi aur confession box ki taraf badhi to John ne bade padri ki jagah wahan bhi li. Uski baton se pata chala ke wo aurat pas k kotho me se ek se ayi veshya thi. Use aj waqt ne bade ajeeb mukam me la khada kia tha. Aj uski beti ki pahli raat thi. Us aurat ki bilkool marzi nahi thi ki uski beti bhi ye ganda kaam kare, uske jism ko bhi log noch khaye jaise salo se uski maa k sath hua. Par ek veshya ki baat kab kahan suni gayi. Na us din jis din use us kothe pe becha gaya tha, na us din jis din uske tirwa baccho ko usse cheen k na jane ka de dia gaya tha. Akhir kothe pe mardzaat baccho ka kya kaam? Kash aj uske teeno bete uske sath hote to shayad apni behan ko yun sare bazaar neelaam na hone dete. Inhi gumon me doobi wo bebas aurat apne aur apne baccho ki kismat per ro rahi thi.
Us roti aurat ki kahani ne magar John ko ek alag sa maza mila. Kunwari ladkio ka shauk jo tha use, aur padri hote hue aise mauke use roz kaha milte hai. Pichli baar ek jawan nun ke chakkar me wo pakde jate jate bach gaya tha. Wo nun ma ban gayi thi. Baat father ko pata chale ya bahar jaye, iske pahle hi John ne us nun ko ek raat dur ganv le ja ke maar dia. John ko to bas kunwari ka nayapan aur masumiyat pasand thi, usi ko lutne me use maza ata tha. Apne is shauk ko pura karne ke mauke kum ate the. Wo to bas kabhi-kabhi church me saf-safai ke liye ane wale ganv ke ladko tak se kaam chala leta tha. Aj fir magar maheeno baad fir ek kunwari ladki ka maza lene ka mauka mila hai. Aj wo kisi keemat pe ye mauka nahi chodega. Boli chahe kitni bhi lage uski boli sabse upar hogi...
Bazaar ab apne shabab pe hai, khaas kharidaro ka swagat karte hue. Dekhna ye hai ab kon lagayega sabse badi boli!