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Saturday, February 28, 2009

कशमकश ज़िन्दगी की!

कहनी है शायद कोई कहानी मगर, मैं बोलता भी नहीं, कोई समझता भी नहीं!
जाना है कही दूर ज़माने से मगर, चलता भी नहीं, मैं ठहरता भी नहीं!
खोया हूँ कही अपने आप में मगर, कोई मिलता भी नहीं, मैं ढूंढ़ता भी नहीं!
रात का साया है हर ओर मगर, सोता भी नहीं, मैं जगता भी नहीं!
दिल में कुछ टीस सी है मगर, रोता भी नहीं, मै हँसता भी नहीं!
ना जाने क्या चाहता हूँ मगर, कुछ मिलता भी नहीं, मै कुछ खोता भी नहीं!
ज़िन्दगी यूँही गुज़रती नहीं मगर, मरता भी नहीं, मै जीता भी नहीं!!!


--------किसी दुश्मन से ज़िन्दगी मांगी थी शायद, जो ज़िन्दगी ही दुश्मन हो गई है!
किसी दोस्त से मौत मांगी थी शायद, जो मौत भी बेवफा हो गई है!!